Mushayera

अब्बास ताबिश की ग़ज़लें /शायरी/मुशायरा

दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं   दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं हम परिंदे कहीं जाते हुए मर जाते …

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