अब्बास ताबिश की ग़ज़लें /शायरी/मुशायरा

Abhishek Ranavat

दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं  

दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं
हम परिंदे कहीं जाते हुए मर जाते हैं

हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस
जो ताल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं

घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा
हम तेरे शहर से जाते हुए मर जाते हैं

किस तरह लोग चले जाते हैं उठ कर चुप -चाप
हम तो ये ध्यान में लेट हुए मर जाते हैं

उन के भी क़त्ल का इलज़ाम हमारे सर है
जो हमें ज़हर पिलाते हुए मर जाते हैं

ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं

हम हैं वो टूटी हुई कश्तियों वाले 'ताबिश '
जो किनारों को मिलते हुए मर जाते हैं


खूबसूरत है वफादार नहीं हो सकता

अपनी मिट्टी का गुनहगार नहीं हो सकता
तल्क हो सकता हूं गद्दार नहीं हो सकता


मैंने पूछा था कि इजहार नहीं हो सकता
दिल पुकारा कि खबरदार नहीं हो सकता


जिस से पूछे तेरे बारे में यही कहता है
खूबसूरत है वफादार नहीं हो सकता


एक मोहब्बत तो कई बार भी हो सकती है
एक ही शख्स कई बार नहीं हो सकता


वैसे तो इश्क का होना ही बहुत मुश्किल है
हो भी जाए तो लगातार नहीं हो सकता


इसलिए चाहता हूं तेरी पलक पर होना
मैं कहीं और नमूदार नहीं हो सकता


तुम्हारे तक मैं बहुत दिल दुखा कर पहुंचा हूं
दुआ करो कि मुझे कोई बद्दुआ ना लगे


मैं तेरे बाद कोई तेरे जैसा ढूंढता हूं
जो बेवफाई करे और बेवफा ना लगे


हजारो इश्क करो लेकिन इतना ध्यान रहे
तुमको पहली मोहब्बत की बद्दुआ ना लगे


सजा सुनाते हुए इतना ध्यान रखिएगा
कि फैसला किसी जालिम का फैसला ना लगे

 


जलता शहर बचाया जा सकता है

पानी आंख में भर के लाया जा सकता है
अब भी जलता शह्र बचाया जा सकता है


एक मुहब्बत और वो भी नाकाम मुहब्बत
लेकिन इससे काम चलाया जा सकता है


दिल पर पानी पीने आती हैं उम्मीदें
इस चश्मे में ज़ह्र मिलाया जा सकता है


मुझ गुमनाम से पूछते हैं फ़रहादो-मजनूं
इश्क़ में कितना नाम कमाया जा सकता है


ये महताब ,ये रात की पेशानी का घाव
ऐसा ज़ख़्म तो दिल पर खाया जा सकता है


फटा पुराना ख़ाब है मेरा फिर भी ‘’ताबिश ‘’
इसमें अपना आप छुपाया जा सकता है

पाँव पड़ता हुआ रस्ता नहीं देखा जाता

पाँव पड़ता हुआ रस्ता नहीं देखा जाता

जाने वाले तिरा जाना नहीं देखा जाता


तेरी मर्ज़ी है जिधर उँगली पकड़ कर ले जा

मुझ से अब तेरे अलावा नहीं देखा जाता


ये हसद है कि मोहब्बत की इजारा-दारी

दरमियाँ अपना भी साया नहीं देखा जाता


तू भी ऐ शख़्स कहाँ तक मुझे बर्दाश्त करे

बार बार एक ही चेहरा नहीं देखा जाता


ये तिरे चाहने वाले भी अजब हैं जानाँ

इश्क़ करते हैं कि होता नहीं देखा जाता


ये तेरे बा'द खुला है कि जुदाई क्या है

मुझ से अब कोई अकेला नहीं देखा जाता


हमें तो ख़ाक पे हुक्मे सफ़र दिया उसने

हमें तो ख़ाक पे हुक्मे सफ़र दिया उसने
वो और होंगे जिन्हें कोई घर दिया उसने

वही के जिसने अता की गुलाब को खुश्बू
मुझे भी शौक़े-अज़ीयत से भर दिया उसने

उसे न मिलने से ख़ुशफ़हमियाँ तो रहती हैं
मैं क्या करूँगा जो इनकार कर दिया उसने

दुआए अब्र का मक़सद तो और था कोई
मेरे चराग़ को पानी से भर दिया उसने

मेरी निगाह को कोई फ़रेब भी देता
अगर ये सच है के हुस्ने-नज़र दिया उसने

शायरी मुशायरा